Premchand Ke Phate Joote (प्रेमचंद के फटे जूते) महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की एक प्रसिद्ध रचना हैं। हरिशंकर परसाई व्यंग्य विधा के महान रचनाकार माने जाते हैं। इस रचना मे उनकी गहन सामाजिक दृष्टिकोण, हास्य व्यंग्य और उनकी धारदार लेखनी का उदाहरण दिखता हैं। हरिशंकर परसाई ने इस रचना मे समाज के अंदर की पाखंड को उधेड़ कर रख दिया हैं। हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के फटे जूते रचना के माध्यम से राजनीतिक ,सामाजिक और साहित्य पर बड़े ही चतुराई से चुटीले अंदाज मे व्यंग्य किया है।
प्रेमचंद के फटे जूते – एक लेखक की गरीबी पर समाज का अमीर व्यंग्य
Premchand Ke Phate Joote एक प्रतीक के रूप इस्तेमाल हुआ है जो एक लेखक की गरीबी को दर्शाता है। यह एक व्यंग्य है जो एक लेखक के प्रति समाज की उदासीनता को व्यक्त करता है। एक मंच पर प्रेमचंद को बुलाया जाता है जहा वह फटे हुए जूते पहना रहता है, जिससे वहा उपस्थित लोग असहज महसूस करने लगते हैं। यह वही समाज है जो एक लेखक की प्रसंशा और इस्तेमाल करता है, लेकिन उसे आर्थिक मदद नहीं करता है।

प्रेमचंद के फटे जूते – सार
लेखक Premchand Ke Phate Joote के माध्यम से प्रेमचंद के बारे मे बताते है ,एक बार प्रेमचंद और उसकी पत्नी फोटो खिचाने जाते है। जहां प्रेमचंद मोठे कपड़े का टोपी , कुर्ता और धोती पहने हुए है। प्रेमचंद के गाल धसे हुए है, लेकिन घनी मूछों की वजह से भरा-भरा दिखाई देता है। प्रेमचंद कैनवास के जूते पहने हुए है, जिसमे एक जूता फटा हुआ है, और उंगली दिखाई दे रही है।
लेखक प्रेमचंद का यह दृश्य देखकर चिंतित है, उनको लगता है फोटो खिचाने के लिए ऐसा पोशाक पहन कर आए है, तो घर मे कैसे रहते होंगे। लेखक हरिशंकर परसाई को लगता है की ये हमेशा ऐसे ही रहते होंगे । घर मे जैसे रहते है वैसे ही फोटो खिचाने आ गए होंगे। लेखक को आश्चर्य होता है की प्रेमचंद को अपनी स्थिति पर जरा भी संकोच या शर्म महसूस नहीं होता बल्कि उनके चेहरे पर तेज आत्मविश्वास दिखता है।
फोटो खिचाते समय जब फोटोग्राफर ने स्माइल प्लीज कहा होगा तो प्रेमचंद ने मुस्कुराने की कोशिश की होगी लेकिन अभाव और संघर्ष के वजह से हंसी दब गई होगी। प्रेमचंद की हसी समाज के ऊपर कड़ा व्यंग्य हैं, जिसने एक महान लेखक की उपेछा की। लेखक का कहना है की फोटो खिचाने के लिए अच्छे जूते पहन कर क्यों नहीं आए? उनका मानना है की पत्नी की आग्रह पर ऐसे ही आ गए होंगे।

Premchand Ke Phate Joote के लेखक हरिशंकर परसाई अपने जूते से तुलना करते हुए कहते है, मेरे जूते से उँगलियाँ बाहर नहीं दिखती लेकिन अंदर से घिस गया है। वही प्रेमचंद के जूते से उँगलिया दिख रही है लेकिन नीचे पूरी तरह से सुरछित है। इसके द्वारा लेखक समाज के अंदर व्याप्त दिखावा और वास्तविकता के ऊपर व्यंग्य करते है। वे समाज के झूठेपन पर कड़ा प्रहार करते हैं।
लेखक हरिशंकर परसाई Premchand Ke Phate Joote के माध्यम से बताते है प्रेमचंद का जूता इसलिए फटा होगा क्योंकि वे समाज मे व्याप्त रूढ़ियों और कुरीतियों से टकराया होगा। उसने समाज के घृणित कुरीतियों से समझौता नहीं किया होगा। उसके बाहर निकली हुई उँगलियाँ समाज के उस झूठी दिखावे की ओर इशारा कर रही है जिसकी आत्मा जूते की तले के समान घिस चुकी है, जिसे वह हमेशा छिपाता रहता है।
आखिरी मे लेखक Premchand Ke Phate Joote के माध्यम संदेश देना चाहते है की संघर्ष और कठिनाई से डरकर कभी भी अपनी वास्तविकता के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। संघर्षों से डरकर कभी भी अपनी वास्तविकता को नहीं घिसनी चाहिए। लेखक कहते है की कभी सच्चाई और अपनी अस्तित्व को दिखावे के लिए नष्ट नहीं करना चाहिए।
प्रेमचंद के फटे जूते के पाँच सीख
- सादगी मे आत्मविश्वास – आत्मविश्वास के साथ सादगी से जीने को प्रेरित करते है।
- दिखावा से बचे- लेखक दिखावा से बचने और वास्तविकता के साथ जीने को कहते है।
- संघर्ष करें- लेखक संघर्ष से भागने के बजाय सच्चाई का सामना करने के लिए कहते है।
- आत्मनिरीछण की प्रेरणा– लेखक आत्मनिरीछण के लिए प्रेरित करते
- व्यंग्यात्मक मुस्कान– लेखक प्रेमचंद के व्यंग्यात्मक मुस्कान के माध्यम से समाज के दोहरे मापदंड के ऊपर प्रश्न करते है।
निष्कर्ष
प्रेमचंद के फटे जूते समाज दोहरे चरित्र के ऊपर तीखा व्यंग्य और सवाल खड़ा करता है। इसमे एक प्रतिभावान लेखक के गरीबी और अभाव को बड़े ही चुटीले अंदाज दर्शाया गया है। यदि आप अपनी सामाजिक दृष्टिकोण को और बढ़ाना चाहते हैं और आपको व्यंग्यात्मक कहानी पढ़ने के शौकीन हो तो हरिशंकर परसाई की Premchand Ke Phate Joote अवश्य पढ़े।
प्रेमचंद के फटे जूते केवल एक कहानी नहीं, बल्कि समाज के चेहरे पर पड़ा हुआ आइना है, जो हमें आत्मनिरीक्षण के लिए मजबूर करता है।

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